जब भी किसी जिज्ञासु भक्त को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है, तो उसे एहसास होता है मानों उसके भीतर कोई पौधा पनप रहा हो। उन्होंने कहा कि जीवन सिर्फ एक ही बार मिलता है और मनुष्य को चाहिए कि सद्कर्म करते हुए सद्गति को प्राप्त हो क्योंकि वक्त किसी का नहीं। बाद में सिवाय पछताने के कुछ नहीं रहता।
जिस प्रकार किसी पौधे को पनपने के लिए तीन चीजें जैसे, खुदाई, खाद व पानी की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार निरंतर सत्संग, सेवा व सुमिरन से ईश्वर प्राप्ति के रास्ते प्रशस्त होते हैं। जब किसी प्राणी द्वारा अपने सतगुरु से सत्यार्थ अर्थात् ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त कर उसका गुणगान अन्य प्राणियों के साथ मिलकर किया जाए तो ही सत्संग कहते हैं। सत्संग से प्राणी की दुर्भावना दूर हो जाती है। जिसके बाद इंसान सांसारिक बंधनों से ऊपर उ कर इंसानियत का पुजारी बन जाता है।