सपनों में पुलक गई
पलकों में मचल गई
नयनों में छलक गई
आंसुओं में ढलक गई
छलकी सी, ढलकी सी, सुधि आई
अंधियारी बगीया में कोयल सी कूक गई
सुनी दुपहरिया में पीड़ा सी हूक गई
कारी बदरिया में उमड़-उमड़ घुमड़ाई
चांदी की रातों में चितवन सी मूक रह, सुधि आई
कोयल सी, पीड़ा सी, कारी बदरिया सी सुधि आई
मंदिर की देहरी पर
पूजा स्वर लहरी पर
श्रद्धा सी ठहर गई,
सुधि आई
ठहरी सी, गहरी सी, सुधि आई
पतझड़ की पातों में
अनसोई रातों में
अनजाने घाटों पर
अनभूली बातों में
सुधि आई
रातों में, बातों में, सुधि आई
भोर की चिरैया सी आंगन में चहक गई
भटकी पुरवैया सी आंचल में बहक गई
बेले की लड़ियों सी सांसों में महक गई
चांद की जुन्हैया सी प्राणों में लहक गई
सुधि आई
आंगन में चहक गई
आंचल में बहक गयी
सांसों में महक गई
प्राणों में लहक गई
सुधि आई, सुधि आई, सुधि आई।