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सूर्य प्रणाम

 
क्या हम सूर्य प्रणाम करते हैं? उगते हुए स्वर्णिम सूर्य से बहुत positive energyव प्राण शक्ति (Life Force) निकलती है। यह वैज्ञानिक भी अपने अनेकों प्रयोग से प्रमाणित कर चुके हैं जिनके जीवन में निराशा हो, नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो, ग्रह नक्षत्रों से पीड़ित हो। वो स्वर्णिम सूर्य को प्रणाम करें व नियमित ध्यान करें। स्वर्णिम सूर्य को शास्त्र सविता देवता कहते हैं। इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है, पुराने किए पापों का शमन होता है मन में प्रसन्नता का संचार होता है। शनि देव को भी सूर्य पुत्र कहा गया है अर्थात सविता सभी ग्रहों के सिरमौर माने जाते हैं उनका नमन व ध्यान जीवन में हर प्रकार की सुख शांति समृद्धि लाने वाला है। लोग व्यर्थ में पण्डितों व ज्योतिशियों के चक्कर काट-काट कर धन व समय गंवाते हैं। इस प्रयोग को कम से कम 40 दिन करें अवश्य लाभ होगा। विधि यह है कि जैसे ही सविता देवता प्रकट हो, हाथ मुँह धोकर किसी ऊँचे स्थान (छत आदि पर) खड़े होकर अथवा बैठकर उनके दर्शन करें खुले नेत्रों से उनकी स्वर्णिम आभा निहारें, श्रद्धा भरे अन्त:करण से उन्हें प्रणाम करें ओउम सूर्याय नम:,  ओउम आदित्याय नम:,  ओउम भास्कराय नम:।  उनसे प्रार्थना करें -
     ‘‘ओउम विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद भद्रं तन्न आसुव।।
हे सम्पूर्ण विश्व के आदि देव हमारी सब बुरार्इयों को हमसे दूर करें व जो कुछ श्रेष्ठ है वह हमें प्रदान करें।
हे सम्पूर्ण विश्व के आदि देव हमारी सब बुरार्इयों को हमसे दूर करें व जो कुछ श्रेष्ठ है वह हमें प्रदान करें। हे प्रभु हमारे अन्दर आशा, साहस, ज्ञान व तेज का संचार करें व हमें पाप ताप रोग दु:खों से छुड़ाएं।
पाँच बार इस मन्त्र का उच्चारण करने के उपरान्त पाँच गायत्री मन्त्र का जप करें।
     ओउम भूर्भव: स्व: तत्सुवितुरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।
हे प्राणस्वरूप, दु:खनाशक व सुख स्वरूप प्रभु! आपका यह सविता स्वरूप ही वरेण्य वरण करने योग्य है। आपके इस पाप नाशक व देवतुल्य स्वरूप को अन्त:करण में धारण करते हैं। आप हमारे बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
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