सूर्य ग्रहण तब होता है, जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रुप से चन्द्रमा द्वारा आवृ्त हो जाए. इस प्रकार के ग्रहण के लिये चन्दमा का प्रथ्वी और सूर्य के बीच आना आवश्यक है. इससे पृ्थ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का आवृ्त भाग नहीं दिखाई देता है.
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है. इसके फलस्वरुप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुंच नहीं पाता है. और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है.
आंशिक सूर्यग्रहण में चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है. इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है. इसे आंशिक सूर्यग्रहण कहा जाता है.
तीसरे और अंतिम प्रकार का सूर्य ग्रहण "वलय सूर्यग्रहण" के नाम से जाना जाता है. इस प्रकार के ग्रहण के समय चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है. सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन के समान प्रतीत होता हे. कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलय सूर्यग्रहण कहा जाता है.