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स्त्रियों का आज्ञा चक्र कैसा होता है

 

यदि आज्ञा का चक्र संवेदनशील हो सके, सक्रिय हो सके तो आपके व्यक्तित्व में एक गरिमा और इन्‍टीग्रिटी आनी शुरू होगी। एक समग्रता पैदा होगी। आप एकजुट होने लगते है। कोई चीज आपके भीतर इकट्ठी हो जाती है। खण्‍ड-खण्‍ड नहीं अखण्‍ड हो जाती है।

इस संबंध में टीके के लिए भी पूछा है तो वह भी ख्याल में ले लेना चाहिए। 
तिलक से थोड़ा हटकर टीके का प्रयोग शुरू हुआ। विशेषकर स्‍त्रियों के लिए शुरू हुआ। उसका कारण वही था, योग का अनुभव काम कर रहा था।

असल में स्‍त्रियों का आज्ञाचक्र बहुत कमजोर चक्र है—होगा ही। 
क्‍योंकि स्‍त्री का सारा व्यक्तित्व निर्मित किया गया है समर्पण के लिए। 
उसके सारे व्यक्तित्व की खूबी समर्पण की है। आज्ञाचक्र अगर उसका बहुत मजबूत हो तो समर्पण करना मुश्किल हो जाएगा।

स्‍त्री के पास आज्ञा का चक्र बहुत कमजोर है। असाधारण रूप से कमजोर है। 
इसलिए स्‍त्री सदा ही किसी का सहारा माँगती रहेगी। चाहे वह किसी रूप में हो। अपने पर खड़े होने का पूरा साहस नहीं जुटा पायेगी। कोई सहारा किसी के कंधे पर हाथ, कोई आगे हो जाए कोई आज्ञा दे और वह मान ले इसमें उसे सुख मालूम पड़ेगा।

स्‍त्री के आज्ञाचक्र को सक्रिय बनाने के लिए अकेली कोशिश इस मुल्क में हुई है, और कहीं भी नहीं हुई। और वह कोशिश इसलिए थी कि अगर स्‍त्री का आज्ञाचक्र सक्रिय नहीं होता तो परलोक में उसकी कोई गति नहीं होती। साधना में उसकी कोई गति नहीं होती। उसके आज्ञाचक्र को तो स्थिर रूप से मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन अगर यह आज्ञाचक्र साधारण रूप से मजबूत किया जाए तो उसके स्‍त्रैण होने में कमी पड़ेगी। और उसमें पुरुषत्व के गुण आने शुरू हो जायेंगे। इसलिए इस टीके को अनिवार्य रूप से उसके पति से जोड़ने की चेष्टा की गई। उसके जोड़ने का
कारण है।

इस टीके को सीधा नही रख दिया गया उसके माथे पर, नहीं तो उसका स्‍त्रीत्‍व कम होगा। 
वह जितनी स्वनिर्भर होने लगेगी उतनी ही उसकी कमनीयता, उसका कौमार्य नष्ट हो जाएगा। 
वह दूसरे का सहारा खोजती है। इसमें एक तरह की कोमलता है। पर जब वह अपने सहारे खड़ी होगी तो एक तरह की कठोरता अनिवार्य हो जाएगी।

तब बड़ी बारीकी से ख्‍याल किया गया कि यदि उसको सीधा टीका लगा दिया जाए, नुकसान पहुँचेगा उसके व्यक्तित्व में, उसमे मां होने में बाधा पड़ेगी, उसके समर्पण में बाधा पड़ेगी। इसलिए उसकी आज्ञा को उसके पति से ही जोड़ने का समग्र प्रयास किया गया।

इस तरह दोहरे फायदे होंगे। उसके स्‍त्रैण होने में अन्‍तर नहीं पड़ेगा। बल्‍कि अपने पति के प्रति ज्‍यादा अनुगत हो पायेगी। और फिर भी उसकी आज्ञा का चक्र सक्रिय हो सकेगा।

इसे ऐसा समझिए, आज्ञा का चक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए, उसके विपरीत कभी नहीं जाता। चाहे गुरु से संबंधित कर दिया जाए तो गुरु के विपरीत कभी नहीं जाता। चाहे पति के संबंधित कर दिया जाए तो पति से विपरीत कभी नहीं जाता। आज्ञाचक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए उसके विपरीत व्यक्तित्व नहीं जाता। अगर उस स्‍त्री के माथे पर ठीक जगह पर टीका है तो वह सिर्फ पति के अनुगत हो सकेगी। शेष सारे जगत के प्रति वह सबल हो जाएगी।

यह करीब-करीब स्थिति वैसी है अगर आप सम्‍मोहन के संबंध में कुछ समझते है तो इसे जल्दी समझ जायेंगे।

एक तरफ वह समर्पित होती है अपने पति के लिए। और दूसरी और शेष जगत के लिए मुक्त हो जाती है। अब उसके स्‍त्री तत्व के लिए कोई बाधा नहीं पड़ेगी। इसीलिए जैसे ही पति मर जाए टीका हटा दिया जाता है। वह इसलिए हटा दिया गया है। कि अब उसका किसी के प्रति भी अनुगत होने का कोई सवाल नहीं रहा।

लोगों को इस बात का कतई ख्‍याल नहीं है, उनको तो ख्‍याल है कि टीका पोंछ दिया, क्‍योंकि विधवा हो गयी। पोंछने को प्रयोजन है। अब उसके अनुगत होने को कोई सवाल नहीं रहा। सच तो यह है कि अब उसको पुरुष की भांति ही जीना पड़ेगा। अब उसमें जितनी स्‍वतंत्रता आ जाए, उतनी उसके जीवन के लिए हितकर होगी। जरा सा भी छिद्र वल्‍नरेबिलिटी का जरा सा भी छेद जहां से वह अनुगत हो सके वह हट जाए।

टीके का प्रयोग एक बहुत ही गहरा प्रयोग है। लेकिन ठीक जगह पर हो, ठीक वस्तु का हो। ठीक नियोजित ढंग से लगाया गया हो तो ही कारगर है अन्यथा बेमानी है। सजावट हो शृंगार हो उसका कोई मूल्‍य नहीं है। उसका कोई अर्थ नहीं है। तब वह सिर्फ औपचारिक घटना है। इसलिए पहली बार जब टीका लगया जाए तो उसका पूरा अनुष्‍ठान हो। और पहली दफा गुरु तिलक दे तब उसके पूरा अनुष्‍ठान से ही लगाया जाए। तो ही परिणामकारी होगा। अन्यथा परिणामकारी नहीं होगा।

आज सारी चींजे हमें व्यर्थ मालूम पड़ने लगी है। उसका कारण है। 
आज तो वयर्थ है। क्‍योंकि उनके पीछे कोई भी वैज्ञानिक रूप नहीं रहा है। सिर्फ उसकी खोल रह गयी है, जिसको हम घसीट रहे है। जिसको हम खींच रहे हैं, बेमन। जिसके पीछे मन का कोई लगाव नहीं रह गया है। आत्मा को कोई भाव नहीं रह गया है, और उसके पीछे की पूरी वैज्ञानिकता का कोई सूत्र भी मौजूद नहीं है।

वह आज्ञाचक्र है, इस संबंध में दो तीन बातें और समझ लेनी चाहिए क्यूंकि यह काम आ सकती है। इसका उपयोग किया जा सकता है।

आज्ञाचक्र की जो रेखा है उस रेखा से ही जुड़ा हुआ हमारे मस्‍तिष्‍क का भाग है। 
इससे ही हमारा मस्तिष्क शुरू होता है। लेकिन अभी भी हमारे मस्तिष्क का आधा हिस्सा बेकार पडा हुआ है। साधारण:। हमारा जो प्रतिभाशाली से प्रतिभाशाली व्यक्ति होता है।

जिसको हम जीनियस कहें, उसके भी केवल आधा ही मस्तिष्क काम करता है। आधा काम नहीं करता। वैज्ञानिक बहुत परेशान है, फिजियोलाजिस्ट बहुत परेशान है कि यह आधी खोपड़ी का जो हिस्‍सा है, यह किसी भी काम में नहीं आता। अगर आपके इस आधे हिस्से को काटकर निकाल दिया जाए तो आपको पता भी नहीं चलेगा। कि कहीं कोई चीज कम हो गई है। क्‍योंकि उसका तो कभी उपयोग ही नहीं हुआ है, वह ना होने के बराबर है।

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Posted Comments
 
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।"
Posted By:  संतोष ठाकुर
 
"om namh shivay..."
Posted By:  krishna
 
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye"
Posted By:  vikaskrishnadas
 
"वास्तु टिप्स बताएँ ? "
Posted By:  VAKEEL TAMRE
 
""jai maa laxmiji""
Posted By:  Tribhuwan Agrasen
 
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है"
Posted By:  ओम प्रकाश तिवारी
 
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