संसार वही है, जो दूसरों का अनुकरण करें। संसार प्याज के छिलकों जैसा है, एक-एक छिलके को उतारने बै ों तो तीखी गंध और आंसू ही हाथ लगते हैं। यह संसार सेमर के फूल जैसा है, जो छूते ही उड जाता है और पकड में नहीं आता। मनुष्य अनुकरणशीलहै और अपनी प्रत्येक अभिलाषा के लिए जीवन भर प्रयत्न करता है। वह सुख चाहता है और सुख की पात्रता का विकास भी करता है। वह संग्रह करना चाहता है और सुरक्षित जीवन के प्रति लालायित है। हम जीवन भर धन, रूप, भूमि, भवन में अपना आश्रय खोजते फिरते हैं। सुख के गलियारे में भटकते हुए हम लोग लंबी आयु चाहते हैं और जब अपेक्षा पूरी नहीं होती, तो भाग्य को दोष देते हैं।
जहां इंद्रियों की पवित्रता बसती है, वहीं सबसे अधिक सुंदरता होती है। एक बार इंद्रियों को साधकर तो देखें हम प्रतिदिन और सुंदर होते चले जाएंगे। हमारा संयम ही हमारी प्रसन्नता और संतुष्टि का कारण बन जाएगा। महाराजश्रीने कहा कि जिस समाज में स्त्री, बालक, वृद्ध, रोगी और अतिथि के अधिकारों का हनन होता हो, वहां से लक्ष्मी चली जाती है। लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी है और राम विष्णु के अवतार है। तभी तो राम जब धरती पर आते है, तो स्त्री का उद्धार करते है। अतिथि का सत्कार करते हैं और वृद्धों को मान देते है।