धर्म जब जीवित होता है तो
हंसना प्रार्थना होती है;
धर्म जब मर जाता है तो
हंसने का दुश्मन हो जाता है।
हंसना जीवन की धड़कन है।
जो धर्म हंसना नहीं जानता,
वह बहुत समय हुआ तब मर चुका, धड़कन बंद हो चुकी है,
श्वास चलती नहीं है, लाश पड़ी है।
लाश की पूजा चल रही है। धर्म पृथ्वी को रूपांतरित नहीं कर पाता है इसीलिए कि धर्म बार-बार हंसने की भाषा भूल जाता है;
गीत भूल जाता है; नृत्य भूल जाता है। यह कोई लत नहीं है।
यह तो तुम्हारी रोज की सुबह की प्रार्थना है, उपासना है।
हंसो, जी भर कर हंसो!
मेरे देखे, अगर कोई समग्ररूपेण
हंसना सीख ले, कि जीवन की कोई भी परिस्थिति उससे उसकी
हंसी न छीन पाए, उसकी मुस्कुराहट बनी ही रहे-- सुख में दुख में, सफलता में असफलता में--तो कुछ और पाने को नहीं बचता। सब पा लिया!
वैसी दशा ही समाधि है, मोक्ष है।
और जिसने हंसना आता है,
उसके आंसू भी हंसते हैं।
और जिसे हंसना नहीं आता,
उसकी हंसी भी रोती है--
रोती-रोती सी ही होती है।
हंसी हंसी में भी तुम भेद देखो।
उदास लोग भी हंसते हैं,
मगर उनकी हंसी कड़वा
स्वाद छोड़ जाती है।
मस्त लोग भी हंसते हैं,
उनकी हंसी से फूल झरते हैं।
मस्ती से हंसो।
एक हंसी होती है,
जो सिर्फ अपने दुख को भुलाने के लिए होती है। उस हंसी का कोई बड़ा उपयोग नहीं है--धोखा है,
आत्मवंचना है। एक हंसी है,
जो तुम्हारे भीतर उठ रहे आनंद से, तुम्हारे भीतर उठ रहे गीत से झरती है। भीतर कुछ भरा-भरा है,
इतना भरा है--जैसे बदली भरी हो वृष्टि के जल से, तो झुकेगी, कहीं बरसेगी; भिगाएगी जमीन को,
पहाड़ों को, वृक्षों को नहलाएगी।
उसे हलका होना ही होगा।
जो हंसी तुम्हें हलका कर जाए,
जो हंसी तुम्हारे आनंद का फैलाव हो, जो हंसी बांटती हो कुछ, वह हंसी पुण्य है।