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हनुमान जी के लंका जाने के पौराणिक प्रमाण

 

भक्ति, श्रद्धा के विषय में अक्सर लोग बातों को अवैज्ञानिक कहकर अपने आप को ज्ञानी या अधिक पढ़ा लिखा दिखाते है। भक्ति के विषयों से जुडी अवधारणाएं समाज में व्याप्त रहती है। जिनके लिए लोगो के भिन्न भिन्न मत रहते है ऐसा ही एक भक्ति का विषय है हनुमान जी के लंका जाने से जुड़ा हुआ जिसके बारे में कोई कहता है कि वे उडकर गए थे तो कोई कहता है कि उड़कर नहीं ग‌ए थे।

 

यह एक पौराणिक कथा का प्रसंग है कि श्री हनुमान जी उडकर कर गए थे या नहीं। जिसको आजकल कोई भी अल्पज्ञानी अतार्किक और अवैज्ञानिक कह सकता है मगर इस विषय पर यदि गहनता से विचार और शोध किया जाए कि क्या कोई व्यक्ति उड़ सकता है? तो इसकी सत्यता के प्रमाण और विधियां मिल जाएँगी कि कोई इंसान कैसे उड़ सकता है। इस विषय की प्रमाणिकता के विषय में निम्नलिखित कुछ बातें काफी महत्वपूर्ण है। हमारे पौराणिक आर्ष ग्रंथों योग दर्शन में महर्षि पतंजलि ने सिद्धियों की विस्तृत व्याख्या की है और हम इन ग्रंथों को विश्वसनीय भी मानते हैं। जो इंसान संकीर्ण मानसिकता और पूर्वाग्रहों से मुक्त है वह ग्रंथों और शास्त्रों में वर्णित इस श्रेष्ठ जानकारी को सहजता से स्वीकार कर सकता है। 

 

सामान्यतः व्यक्ति यह मानता है कि जो कार्य वह नहीं कर सकता उसको अन्य कोई भी नहीं कर सकता है। यही सोचकर बड़ी आसानी और शीघ्रता से व्यक्ति  अपने वक्तव्य को सही साबित करने के लिए एक बात कह देता हैं कि ये विषय तो सृष्टि के अनुकूल नहीं है अथवा अवैज्ञानिक है। किन्तु यदि उससे पूछा जाये कि क्या आप सृष्टि और विज्ञान के सभी नियमो को जानते हो जिनके आधार पर आप इसे अवैज्ञानिक कह रहे हो तो वह व्यक्ति शब्दहीन हो जाते है?

 

उनसे यदि पूछेंगे कि सत्व, रज और तमस किस प्रकार से कार्य करते हैं और उनमें कितनी दिव्य क्षमताएं भरी है क्या इसके विषय में जानकारी है आपको तो उनका उत्तर केवल नहीं आएगा ? 

यह मानव स्वभाव है कि वह प्रत्येक उस विषय को अस्वीकार कर देता है जिसके विषय में उसको जानकारी नहीं है या जो उसकी सोच से परे है। उदहारण के तौर पर जब किसी ने पहली बार रिमोट से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को ऑपरेट होते देखा होगा तो उसको यह एक असंभव कार्य लगा होगा मगर जिसने अपने बचपन से ऐसा होते देखा होगा उसके लिए यह एक सामान्य सी बात है। किन्तु यही बात कुछ वर्षो पूर्व जब कोई कहता होगा तो सामान्य लोग कभी भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हुए होंगे। 

 

इस प्रकार के बहुत से विषय है जिनकी जानकारी अभी भी लोगो के पास में नहीं है, किन्तु हमारे महान विद्वान् ज्ञानी पूर्वजो ने ग्रन्थ शास्त्रों में ऐसे अनेक विषय और ज्ञान गूढ़ भाषा में लिखे है। जिन पर लोग अभी भी खोजें ही कर रहे है। हनुमान जी के लंका जाने के विषय में भी ऐसे ही कुछ दिव्य प्रमाण रामायण के श्लोकों में देखने को मिलते है। 

 

वाल्मीकि रामायण के ये श्लोक गूढ़ भाषा में लिखे गए है जिनके दिए गए अर्थ से समझा जा सकता है कि हनुमान जी ने आज के समय में असंभव सा लगने वाला वह कार्य कैसे किया होगा। 

 

योग दर्शन के निम्नलिखित प्रमाण जानकार, उनको पढ़कर, मनन करके व्यक्ति इन विषयों की सत्यता पर पहुँच सकता है। 

 

जन्मौषधि मंत्र तपः समाधिजाः सिद्धयः ॥ योग कैवल्य पाद ॥१॥

 

शब्दार्थ- (जन्म-औषधि-मन्त्र-तपः-समाधिजाः) जन्म, औषधि, मन्त्र, तप और समाधि से (सिद्धयः) सिद्धियां प्राप्त की जाती हैं। सूत्रार्थ- पूर्व जन्म के संस्कारों से, औषधियों के सेवन से, गायत्री आदि मन्त्रों के जप से, तप से और समाधियों से 'सिद्धियाँ' उत्पन्न होती हैं। 

 

उदानजयाज्जलपङ्ककण्टकादिष्वसङ्ग उत्क्रान्तिश्च ॥ योग विभूति पाद ॥ ३९ ॥

 

शब्दार्थ - (उदान-जयात्) उदान के जीतने से (जल-पार्क-कटक-आदिषु-असङ्ग उत्क्रान्ति:-च) जल, पङ्क, कण्टकादि में असङ्ग रहता है और ऊर्ध्वगति होती है। सूत्रार्थ - उदान की जीतने से जल, पङ्ग काटें आदि से सङ्ग नहीं होता अर्थात् जलादि में योगी का शरीर नहीं डूबता, योगी के शरीर में काटें आदि नहीं चुभते और मौत के उपरांत वह योगी ऊंची गति को प्राप्त करता है।

 

कायाकाशयोः सम्बन्धसंयमात् लघुतूलसमापत्तेश्चाकाशगमनम् ॥ ४२ ॥

 

शब्दार्थ- (काय-आकाशयोः) शरीर और आकाश के (सम्बन्ध-संयमात्) सम्बन्ध में संयम करने से (लघु-तूल-समापत्तेः-च) और हल्के तूल आदि पदार्थों में संयम के द्वारा समापत्ति प्राप्त होने पर (आकाश-गमनम्) आकाश में गमन सिद्ध हो जाता है। सूत्रार्थ - शरीर और आकाश के सम्बन्ध में संयम करने से अथवा हल्के रूई आदि पदार्थों में संयम के माध्यम से चित्त के तदाकार होने पर 'आकाश गमन' की सिद्धि प्राप्त होती है।


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