जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
हनुमानजी संस्कृत भाषा, चारों वेद व छः वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, तिरुक्त, छंद, ज्योतिष) के ज्ञाता हैं।
ज्ञान, विज्ञान और वैराग्य को भली-भाँति समझने वाले हैं।
हनुमान जी ज्ञान के सागर हैं, क्योंकि प्रभु श्रीराम द्वारा दिया हुआ वास्तविक ज्ञान इन्हें ही प्राप्त हुआ है।
हनुमान जी ने ज्ञान, कर्म, धर्म एवं भक्ति की पूर्ण शिक्षा प्राप्त की और उसे जीवन में अपनाया।
इन सभी विद्याओं की प्रतिमूर्ति बन कर ज्ञानिनामग्रगण्यम कहलाने का सौभाग्य प्राप्त किया।
बाल-लीला करते हुए जिस सूर्यदेव को इन्होंने अपने मुख में रख लिया था वही इनके गुरु बने, अपने गुरु श्रीसूर्यदेव के सानिध्य में रह कर ही ये सभी विद्याओं की प्रतिमूर्ति बने।
सौम्यगुणी हनुमान राग, द्वेष और ईर्ष्या से रहित रह कर संसार के प्राणियों का उद्धार करते हैं।
हनुमानजी रावण के तेज, विद्या और योग्यता की तारीफ करते हैं और कहते हैं, रावण यदि अपने अहंकार, अभिमान का त्याग कर दे तो त्रिलोकी का शासन करने की योग्यता रखता है।
रामायण में हनुमान जी का कहना है:- रावण हमारा विरोधी है, यदि सुधर जावे तो उद्धार के लिये प्रभु से निवेदन करने में भी कोई आपत्ति नहीं है।
विरोधी का उद्धार एवं उसका मोक्ष कोई सद्गुणी ही कर सकता है।
हनुमानजी तो रावण के कटु वचनों को सुन कर व उसके क्रोध को देखकर भी धीर-गम्भीर बने रहते हैं और इसी कारण सौम्यगुणी हनुमान जी की कीर्ति की चर्चा तीनों लोकों में होती है।
यदि भक्त हनुमान जी के इन अनुकरणीय गुणों को अपने जीवन में उतारने के लिये हनुमानजी की उपासना करे तो उसका उद्धार सुनिश्चित मानिये।
हनुमानजी की उपासना करने से मनुष्य को आत्मज्ञान हो जाता है, जिसे जीवन में अर्जित सबसे बड़ा लाभ माना जाता है।
हनुमानजी ज्ञानी हैं, गुणों के सागर हैं, प्रभु के परम भक्त हैं इसलिये निरभिमान हैं।
जीवन में ज्ञान का अपना महत्त्व है, ज्ञानी का सभी सम्मान करते हैं, लेकिन भक्ति, ज्ञान से भी अधिक महान है।
ज्ञान में अभिमान हो सकता है लेकिन भक्ति में केवल नम्रता होती है, परंतु कर्मफल की प्राप्ति एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिये ज्ञान अति आवश्यक है।
भक्ति निःस्वार्थ भाव से की जाने वाली सेवा है, इसीलिये जहाँ ज्ञान में विद्वता और क्षमता प्रदर्शित होती है वहीं भक्ति में सहिष्णुता एवं वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव परिलक्षित होता है।
ज्ञान में तर्क-वितर्क समाहित है तो भक्ति में समर्पण।
प्रत्येक मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है लेकिन भक्ति अकिंचन को ही प्राप्त होती है, अभिमानी को नहीं।
कहने का तात्पर्य यह है कि ज्ञान और भक्ति के समन्वय में ही ईश्वर समाहित है।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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