नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमान बीरा॥
हनुमानजी के नाम का निरन्तर जप सर्व रोगनाशक, सर्व पीड़ानाशक औषधि है, समस्त व्याधियों से मुक्ति पाने का सुगम साधन है।
रात्रि में सोते समय, प्रातःकाल उठते समय, किसी भी कार्य को प्रारम्भ करते समय, यात्रा पर प्रस्थान करते समय जो भक्त सच्चे मन से हनुमानजी को याद करता है वह पूर्णतः कष्ट रहित एवं भयमुक्त हो जाता है।
हनुमानजी भक्त के धार्मिक, दैविक एवं दैहिक कष्टों का सर्वानुकूल समाधान कर देते हैं, इस विशेषता के कारण ही इन्हें संकटमोचन भी कहते हैं ।
हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो
महाबल:।
रामेष्ट:
फाल्गुनसख:
पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥
एवं
द्वादश
नामानि
कपीन्द्रस्य
महात्मन:।
स्वापकाले
प्रबोधे
च यात्राकाले च य: पठेत्॥
तस्य
सर्वभयं
नास्ति
रणे च विजयी भेवत्।
राजद्वारे
गह्वरे
च भयं नास्ति कदाचन॥
हनुमानजी के इन बारह नामों का ध्यान करते समय मन राग-द्वेष रहित हो, मन में वैराग्यभाव हो, मन को पूरी तरह अपने वश में रखें।
इसमें आपका शरीर भी पूर्ण सहयोग करे, तभी तन-मन से उपासना सम्भव हो सकती है।
इसके बाद आप वाचिक (जीभ द्वारा), उपांसु (कंठ द्वारा) व मानसिक (मन से हनुमान स्मरण) उपासना करेंगे तो वह निश्चितरुप से फलदायी होगी।
सब प्रकार की पीड़ाओं और सांसारिक कष्टां से मुक्ति पाने के लिये मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करने से ही भगवान श्रीराम के चरण-कमलों की कृपा एवं आश्रय प्राप्त होता है।
काशीरुपी आनन्द-वन में तुलसीदासजी चलता-फिरता तुलसी का पौधा है तो भैरवजी काशी के नगर-कोतवाल (नगर-रक्षक) हैं।
एक बार नाराज भैरवजी ने गोस्वामी तुलसीदासजी की बांह में असहनीय पीड़ा कर दी।
चिकित्सा करायी, तंत्र, मंत्र, यंत्र का सहारा लिया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, पीड़ा में निरन्तर वृद्धि होती रही।
जब पीड़ा असह्य हो गयी तो हनुमानजी याद आये:- हे हनुमान, आइये, मेरे माथे पर अपनी लम्बी पूंछ घुमा कर मुझे इस असह्य पीड़ा से मुक्त कीजिये, इस पीड़ा के कारण मैं प्रभु श्रीराम का स्मरण भी नहीं कर पा रहा हूँ।
भक्त की करुण पुकार सुन कर हनुमानजी आये, उन्होंने तुलसीदासजी का हाथ पकड़ा तो वे पीड़ा के कारण रो पड़े।
यह पीड़ा भैरव की देन है सुन कर, हनुमानजी को गुस्सा आ गया।
इस बात की जानकारी होते ही भैरव, भगवान शिव के पास पहुँच गये, कुछ देर बाद हनुमान भी वहां पहुँच गये।
उन्होंने भगवान शिव से पूछा:- भैरव ने तुलसीदास को पीड़ा क्यों दी?
शिवजी ने कहा:- गोस्वामी तुलसीदासजी ने देवताओं की स्तुति की, भूतप्रेतों की स्तुति की लेकिन काशी के कोतवाल को भूल गये।
हनुमान जी समझ गये, भैरव का क्रोध एवं नाराजगी सकारण है, अकारण नहीं।
हनुमानजी ने तुलसीदासजी से कहा:- गोस्वामीजी आप नगर रक्षक भैरवजी की भी स्तुति करें।
भैरवजी की स्तुति करते ही गोस्वामीजी की पीड़ा दूर हो गई।
हनुमानजी निश्चित रुप से हरैं सब पीरा हैं, सभी तरह के कष्टों एवं पीड़ाओं का हरण करते हैं।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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