जो अपने सुख से प्रसन्न नहीं होता तथा दूसरे के दुख से दुखी होता है और दान देकर पश्चाताप नहीं करता। वह सदाचारी कहलाता है। इसलिए सदाचार ही कल्याण का साधन है। व्यक्ति के जीवन में जब भक्ति रूपी गंगा, ज्ञान रूपी सरस्वती तथा सत्कर्म रूपी यमुना का संगम होता है तभी राम रूपी सागर में उसका मिलन होता है। प्रभु के सामने सच्चे मन से जो भी जाता है उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।