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तिलक

 

वैदिक सभ्यता से अवगत लोगों को पता ही होगा कि उसके अनुयायी माथे पर कुछ चिन्ह लगाते हैं, जिसे तिलक कहा जाता है। तिलक अनेक प्रकार के होते हैं, कुछ राख द्वारा बनाये हुए, कुछ मिट्टी से, कुछ कुम-कुम आदि से।

माथे पर राख द्वारा चिन्हित तीन आड़ी रेखाऐं दर्शाती हैं की लगाने वाला शिव-भक्त है। नाक पर तिकोन और उसके ऊपर “V” चिन्ह यह दर्शाता है कि लगाने वाला विष्णु-भक्त है। यह चिन्ह भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक है, जो विष्णु मन्त्रों का उच्चारण करते हुए लगाया जाता है। तिलक लगाने के अनेक कारण एवं अर्थ हैं परन्तु यहाँ हम मुख्यतः वैष्णवों द्वारा लगाये जाने वाले गोपी-चन्दन तिलक के बारे में चर्चा करेंगे । *गोपी-चन्दन* (मिट्टी) द्वारका से कुछ ही दूर एक स्थान पर पायी जाती है। इसका इतिहास यह है कि जब भगवान इस धरा-धाम से अपनी लीलाएं समाप्त करके वापस गोलोक गए तो गोपियों ने इसी स्थान पर एक नदी में प्रविष्ट होकर अपने शरीर त्यागे। वैष्णव इसी मिटटी को गीला करके विष्णु-नामों का उच्चारण करते हुए, अपने माथे, भुजाओं, वक्ष-स्थल और पीठ पर इसे लगते हैं।

तिलक हमारे शरीर को एक मंदिर की भाँति अंकित करता है, शुद्ध करता है और बुरे प्रभावों से हमारी रक्षा भी करता है। इस तिलक को हम स्वयं देखें या कोई और देखे तो उसे स्वतः ही श्री कृष्ण का स्मरण हो आता है। गोपी चन्दन तिलक के माहात्म्य का वर्णन विस्तार रूप में *गर्ग-संहिता के छठवें स्कंध, पन्द्रहवें अध्याय* में किया गया है। उसके अतिरिक्त कई अन्य शास्त्रों में भी इसके माहात्म्य का उल्लेख मिलता है।

कुछ इस प्रकार हैं:

अगर कोई वैष्णव जो उर्धव-पुन्ड्र लगा कर किसी के घर भोजन करता है, तो उस घर के २० पीढ़ियों को मैं (परम पुरुषोत्तम भगवान) घोर नरकों से निकाल लेता हूँ। – *(हरी-भक्तिविलास ४.२०३, ब्रह्माण्ड पुराण से उद्धृत)*

हे पक्षीराज! (गरुड़) जिसके माथे पर गोपी-चन्दन का तिलक अंकित होता है, उसे कोई गृह-नक्षत्र, यक्ष, भूत-पिशाच, सर्प आदि हानि नहीं पहुंचा सकते। – *(हरी-भक्ति विलास ४.२३८, गरुड़ पुराण से उद्धृत)*

जिन भक्तों के गले में तुलसी या कमल की कंठी-माला हो, कन्धों पर शंख-चक्र अंकित हों, और तिलक शरीर के बारह स्थानों पर चिन्हित हो, वे समस्त ब्रह्माण्ड को पवित्र करते हैं । – *पद्म पुराण*

*तिलक कृष्ण के प्रति हमारे समर्पण का एक बाह्य प्रतीक है। इसका आकार और उपयोग की हुयी सामग्री,हर सम्प्रदाय या आत्म-समर्पण की प्रक्रिया पर निर्भर करती है।*

*श्री संप्रदाय* का तिलक चीटियों की बांबी से निकली हुयी सफ़ेद मिटटी से बनता है। शास्त्र बताते हैं कि तुलसी के नीचे और चीटियों की बांबी से पाई जाने वाली मिट्टी शुद्ध और तिलक बने के लिए उपयुक्त होती है। श्री वैष्णव माथे पर “V” चिन्ह बनाते हैं जो भगवान विष्णु के चरणों को दर्शाता है तथा बीच में लाल रेखा बनाते हैं जो लक्ष्मी देवी का प्रतीक है। यह लाल रंग सामान्यतया उसी बांबी में सफ़ेद मिटटी के साथ ही पाया जाता है। यह संप्रदाय लक्ष्मी जी से आरम्भ होता है और यह तिलक श्री वैष्णवों के समर्पण भाव को दर्शाता है क्योंकि वे लक्ष्मी जी के अनुगत होकर भगवान विष्णु तक पहुँचते हैं। हर सम्प्रदाय के तिलक उसके सिद्धांत को वर्णित करता है।

*वल्लभ सम्प्रदाय* में तिलक आम तौर पर एक खड़ी लाल रेखा होती है । यह रेखा श्री यमुना देवी की प्रतीक है । वल्लभ सम्प्रदाय में भगवान कृष्ण को श्रीनाथ जी एवं गोवर्धन के रूप में पूजा जाता है। यमुना जी श्री गोवर्धन की भार्या है । इस संप्रदाय में आत्मसमर्पण की प्रक्रिया श्री यमुना देवी के माध्यम से चली आ रही है।

*मध्व सम्प्रदाय* में तिलक द्वारका में मिली मिट्टी, “गोपी-चन्दन” से किया जाता है। तिलक की दो खड़ी रेखाएं भगवान कृष्ण के चरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं । यह गोपी-चन्दन तिलक गौड़ीय सम्प्रदाय में उपयोग में लए जाने वाले तिलक के लगभग समान है । इन दो खड़ी रेखाओं के बीच यज्ञ-कुण्ड में दैनिक होम के बाद बने कोयले से एक काली रेखा भी बनायीं जाती है । इस सम्प्रदाय में, पूजा की प्रक्रिया में नित्य-होम भी होता है। काले रंग की रेखा के नीचे, एक पीला या लाल बिंदु लक्ष्मी या राधारानी को इंगित करता है । जो भक्त दैनिक यज्ञ होम नहीं करते वे केवल गोपीचन्दन तिलक ही लगते हैं ।

*गौड़ीय संप्रदाय* में तिलक सामन्यतया गोपी-चन्दन से ही किया जाता है। कुछ भक्त वृन्दावन की रज से भी तिलक करते हैं। यह तिलक मूलतः मध्व तिलक के समान ही है। परन्तु इसमें दो अंतर पाये जाते हैं । श्री चैतन्य महाप्रभु ने कलियुग में नाम-संकीर्तन यज्ञ को यज्ञ-कुण्ड में होम से अधिक प्रधानता दी, इस कारण तिलक में भी बीच की काली रेखा नहीं लगायी जाती। दूसरा अंतर है भगवान श्री कृष्ण को समर्पण की प्रक्रिया। गौड़ीय संप्रदाय में सदैव श्रीमती राधारानी की प्रत्यक्ष सेवा से अधिक, एक सेवक भाव में परोक्ष रूप से सेवा को महत्व दिया जाता है । इस दास भाव को इंगित करने के लिए मध्व संप्रदाय जैसा लाल बिंदु न लगाकर भगवान के चरणों में तुलसी आकार बनाकर तुलसी महारानी की भावना को दर्शाया जाता है, ताकि उनकी कृपा प्राप्त कर हम भी श्री श्री राधा-कृष्ण की शुद्ध भक्ति विकसित कर सकें ।
किसी भी स्थिति में, तिलक का परम उद्देश्य अपने आप को पवित्र और भगवान के मंदिर के रूप में शरीर को चिन्हित करने के लिए है । शास्त्र विस्तार से यह निर्दिष्ट नहीं करते कि तिलक किस ढंग से किये जाने चाहिए। यह अधिकतर आचार्यों द्वारा शास्त्रों में वर्णित सामान्य प्रक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए बनायीं गयी हैं ।

*पद्म पुराण के उत्तर खंड* में भगवान शिव, पार्वती जी से कहते हैं कि वैष्णवों के “V” तिलक के बीच में जो स्थान है उसमे लक्ष्मी एवं नारायण का वास है। इसलिए जो भी शरीर इन तिलकों से सजा होगा उसे श्री विष्णु के मंदिर के समान समझना चाहिए ।

*पद्म पुराण में एक और स्थान पर:*
वाम्-पार्श्वे स्थितो ब्रह्मा
दक्षिणे च सदाशिवः
मध्ये विष्णुम् विजनियात
तस्मान् मध्यम न लेपयेत्
तिलक के बायीं ओर ब्रह्मा जी विराजमान हैं, दाहिनी ओर सदाशिव परन्तु सबको यह ज्ञात होना चाहिए कि मध्य में श्री विष्णु का स्थान है। इसलिए मध्य भाग में कुछ लेपना नहीं चाहिए।

बायीं हथेली पर थोड़ा सा जल लेकर उस पर गोपी-चन्दन को रगड़ें। तिलक बनाते समय पद्म पुराण में वर्णित निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें:

*ललाटे केशवं ध्यायेन*
*नारायणम् अथोदरे*
*वक्ष-स्थले माधवम् तु* 
*गोविन्दम कंठ-कुपके* 
*विष्णुम् च दक्षिणे कुक्षौ* 
*बहौ च मधुसूदनम्* 
*त्रिविक्रमम् कन्धरे तु* 
*वामनम् वाम्-पार्श्वके* 
*श्रीधरम वाम्-बहौ तु* 
*ऋषिकेशम् च कंधरे* 
*पृष्ठे-तु पद्मनाभम च* 
*कत्यम् दमोदरम् न्यसेत्* 
*तत प्रक्षालन-तोयं तु*
*वसुदेवेति मूर्धनि*

*माथे पर* – ॐ केशवाय नमः
*नाभि के ऊपर* – ॐ नारायणाय नमः
*वक्ष-स्थल* – ॐ माधवाय नमः
*कंठ* – ॐ गोविन्दाय नमः
*उदर के दाहिनी ओर* – ॐ विष्णवे नमः
*दाहिनी भुजा* – ॐ मधुसूदनाय नमः
*दाहिना कन्धा* – ॐ त्रिविक्रमाय नमः
*उदर के बायीं ओर* – ॐ वामनाय नमः
*बायीं भुजा* – ॐ श्रीधराय नमः
*बायां कन्धा* – ॐ ऋषिकेशाय नमः
*पीठ का ऊपरी भाग* – ॐ पद्मनाभाय नमः
*पीठ का निचला भाग* – ॐ दामोदराय नमः
अंत में जो भी गोपी-चन्दन बचे उसे ॐ वासुदेवाय नमः का उच्चारण करते हुए शिखा में पोंछ लेना चाहिए।

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Posted Comments
 
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।"
Posted By:  संतोष ठाकुर
 
"om namh shivay..."
Posted By:  krishna
 
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye"
Posted By:  vikaskrishnadas
 
"वास्तु टिप्स बताएँ ? "
Posted By:  VAKEEL TAMRE
 
""jai maa laxmiji""
Posted By:  Tribhuwan Agrasen
 
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है"
Posted By:  ओम प्रकाश तिवारी
 
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