Home » Lal Kitab Remedies » उपचार के तरीके और कारण

उपचार के तरीके और कारण

उपचार करने की तीन विधियां है,यह लगभग उसी प्रकार से है,जैसे सभी कार्यों के प्रति संसार में रीतियां अपनाई जाती है,निम्न,मध्यम और उच्च,उसी प्रकार से तीन विधियां लालकिताब के अन्दर अपनाई जातीं है,टोटके,उपाय और सदाचरण.टोटके तात्कालिक राहत देने वाले होते है,जैसे किसी को बुखार आ गया है,और लगातार बढता जा रहा है,तो उसे उतारने के लिये ठंडे पानी की पट्टी माथे पर लगाने और शरीर को बर्फ़ आदि से ठंडा किया जाता है,तो चढता हुआ बुखार कम हो जाता है,या बुखार के आने पर बुखार उतारने की गोली खा ली जाती है,उससे आराम तो कुछ समय के लिये हो जाता है,लेकिन बुखार हमेशा के लिये नही जाता है.दूसरा उपाय उपचार कहलाता है,जिसके द्वारा बुखार का इलाज सही तरीके से कर लिया जाये,और लगातार पूरी दवाई लेकर उसे हमेशा के लिये खत्म कर दिया जावे,तीसरा उपाय जो हमेशा के लिये किया जाता है,जिसे सदाचरण कहते है,अगर बुखार वाली जगह पर नही रहना,बुखार पैदा करने वाले भोजन को नही करना,शरीर को तंदुरुस्त बनाये रखना,और लगातार व्यायाम आदि करने के बाद शरीर को बीमारियों से बचाव करने के लिये सक्षम रखना.
जैसे किसी की कुन्डली में शनि द्वारा सूर्य पीडित है,औकात बनाने के लिये जगह नही मिलती है,जहां भी और जिस काम के लिये हाथ डाला जाता है,कामयाबी नही मिलती है,पिता को केवल यही चिन्ता रहती है,कि पुत्र कब काम करेगा,साथ ही दोनो में से एक ही कर्म कर सकता है,चाहे पिता करे या पुत्र करे,पिता और पुत्र की साथ साथ उन्नति नही हो पाती है,तो उसके उपाय तीन तरह से किये जा जायेंगे,जिससे शनि के द्वारा पीडित सूर्य शांति प्राप्त कर सके:-

पहले सामयिक राहत देने के लिये मंगल को दबाना पडेगा,कारण शनि और सूर्य की युति में मंगल बद हो जाता है,जातक के अन्दर तामसी वृत्तियों का प्रभाव दिखाई देने लगता है,वह शराब कबाब और भूत के भोजन की तरफ़ अपना मानस बना लेता है,अपनी संगति बुरे पुरुषों या बुरी स्त्रियों के साथ बना लेता है,शरीर में कितनी ही बीमारियां घर कर जाती है,अधिकतर मानसिक बीमारियां ही पैदा होती है,तो राहत देने के लिये मंगलवार के दिन आठ कुल्ल्हडों के अन्दर गुड भरकर उन कुल्ल्हडों के ऊपर मिट्टी के ढक्कन लगाकर शमशानी जमीन के अन्दर दबा देते है,इससे प्राथमिक उपचार मिल जाता है,जातक का दिमाग जो मारकाट और बुरी संगति के अन्दर जा रहा होता है,उसमे कमी आ जाती है.

दूसरी लम्बी अवधि के लिये पिता और पुत्र को दूर दूर कर देते है,पुत्र का धन पिता को नही देते और पिता का धन पुत्र को नही देते,या एक ही छत के नीचे पिता और पुत्र को नही रहने देते,पिता के द्वारा घर के अन्दर किसी भी भाग में अन्धेरा नही रह पाये,यह उपाय करवा दिया जाता है,क्योंकि शनि का बास घर के अन्धेरे में रहता है,पिता को कार्य करते वक्त बुध का सहारा लेना उत्तम होता है.

तीसरा उपाय जो हमेशा के लिये प्रभावी होता है,वह सूर्य और शनि की युति वालों को खास रूप से समझ लेना चाहिये,कि पिता को पुत्र का सुख नही है,इसीलिये उसकी शादी विवाह कर देने के बाद उसके लिये अपनी तरफ़ से कोई रोजीरोजगार का बन्दोबस्त करने के बाद अपने से दूर बसा देना चाहिये,और जिस प्रकार माता या परिवार का मोह प्रपौत्रों का सम्मोहन अगर आकर्षित करता है,तो केवल दुनियावी तौर पर ही देखना चाहिये.यह दीर्घकालिक उपाय कहा जायेगा.और जो सबसे बडा सदाचार कहलायेगा,वह यह होगा कि पुत्र कभी अपने पिता के सामने बैठ कर किसी बात का तर्क कुतर्क न करे,और अपने में मस्त रहकर पिता की उपेक्षा नही करे,इस प्रकार से पिता के साथ रहते हुये भी पुत्र के प्रति पिता का रुख कभी खराब नही होगा,किसी बात या लेन देन के लिये पुत्र अपनी अपनी पत्नी का सहारा ले,और की जाने वाली कमाई को पिता पुत्र एक ही स्थान पर नही रखें,पिता अपनी कमाई को अपने पास रखे,और घर आदि के निर्माण के लिये अधिक कार्य न करे,और न ही कभी बनाये घर को तोड कर दुबारा से बनाये,यह प्रभाव लगातार पुत्र की बयालीस साल की उम्र तक मिलता है,अधिकतर मामलों में एक ही पुत्र की उपाधि मिलती है,और पिता का व्यवसाय भी जनता से सम्बन्धित होता है,जैसे चावल,पानी,चांदी,और बैंक आदि पब्लिक से जुडे कार्य.

प्राचीन समय में ज्योतिषी,डाक्टर और अध्यापक के लिये तीन डिग्री रखना जरूरी होता था,ज्योतिषी को डाक्टरी विद्या के साथ मास्टरी विद्या का रखना जरूरी होता था,डाक्टर को ज्योतिष के साथ मास्टरी भी जरूरी हुआ करती थी,और मास्टर यानी अध्यापक को ज्योतिष और डाक्टरी विद्या का पूरा पूरा ज्ञान रखना आवश्यक होता था.इसी प्रकार से लालकिताबकार को अपने पास इन तीनों का होना बहुत ही आवश्यक है,जब तक किसी डाक्टर की तरह से समस्या का निदान नही निकालता है,और जो रोग है,उसका हटाने का निराकरण नही जानता है,और समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को मास्टर की तरह से समझाने की हैसियत नही रखता है,वह कदापि लालकिताब या ज्योतिष का प्रयोग नही कर सकता है,लालकिताब कार को कभी भी समस्या से ग्रसित व्यक्ति के प्रति दुनियावी व्यवहार नही रखना चाहिये,और यह सत्य भी है,कि डाक्टरी और मास्टरी के साथ ज्योतिष कभी भी बैर,प्रीति और व्यवहार में नही चलती है.इन सब के रहते मानसिक प्रभंजना बिगड जाती है,और जो सामने वाले के प्रति करना चाहिये,या उपाय देना चाहिये वह नही दिया जा सकता है,अगर किसी प्रकार से जातक से बैर है,तो या तो जातक बताये जाने वाले उपाय को करेगा नही,वह किसी भी बताये गये उपाय को खिल्ली बनाकर उडा देगा,और समाज में बदनाम करने की कोशिश करेगा,या ज्योतिषी या डाक्टर या अध्यापक की मानसिक प्रभंजना जातक के प्रति धनात्मक न होकर ऋणात्मक होगी,जिससे वह किसी प्रकार से चाह कर भी सही उपाय नही दे पायेगा.प्रेम करने वाला घर की मुगी दाल बराबर मान कर किसी प्रकार से अपने को उन प्रयोगों में नही ले जा पायेगा,जो उसके लिये फ़लदायी है,व्यवहार के चलते जातक को या तो इन तीनो से लोभ के कारण काम करने का मानस बनेगा,या ज्योतिषी अथवा डाक्टर या मास्टर अधिक धन कमाने के चक्कर में सही उपाय नही दे पायेगा.

सदाचरण एक सबसे बहुमूल्य उपाय कहा जाता है,इसके द्वारा ग्रह की अशुभता सदा के लिये खत्म हो जाती है,लालकिताब की आचार संहिता का पालन करना ही सदाचार का पालन करना कहलाता है,सदाचार का पालन करने के बाद किसी प्रकार की हानि नही होती है,यह अटल सत्य है,और जब तक सृष्टि का विस्तार रहेगा,यह बात कभी झूठी भी नही हो सकती है,लालकिताब के टोटके केवल सिर दर्द में पेन किलर टेबलेट के समान है,जबकि सदाचार से कभी भी सिरदर्द हो ही नही सकता है.

लालकिताब का नियम है कि जिस प्रकार से धन और सम्पत्ति विरासत में मिलते है,उसी प्रकार से अनिष्ट भी विरासत में मिलते है,जातक ने पाप की कमाई से धन को जोडा,उसके धन में पाप चिपक गया,जातक की मृत्यु के बाद वह धन उसके पुत्र को मिला,तो वे पाप भी पुत्र के पास आ गये,और उन पापों की बजह से पुत्र को कष्ट भुगतने भी जरूरी है,इसी लिये कहा गया है,कि निसंतान की सम्पत्ति नही लेनी चाहिये,पता नही किन किन पापो की बजह से उसके पुत्र नही हुये,वे पाप कही जातक के पास आ गये तो उसे भी निपुत्र मरना पडेगा,हमारी जानकारी कितने ही केश इस प्रकार के आये है,जयपुर में ही बैंक वालों की गली में एक जैन साहब निवास करते है,वे किसी के पास दत्तक पुत्र के रूप में आये थे,उनके पैतृक कारणों से उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां हो गये,दोनो पुत्रों का कोई सम्बन्ध नही हो पाया,और दोनो पुत्रियों में एक ने तो जबरदस्ती शादी भी कर ली लेकिन उसके भी संतान नही चल पायी.यह माया का खेल है,किसी के समझ में नही आता है,जब समझ में आता है तो समय उसी प्रकार से निकल गया होता है,जिस प्रकार से पानी सिर के ऊपर से निकल जाता है,बाद में हो भी कुछ नही पाता है,जातक अगर किसी प्रकार से सदाचार का पालन करता रहे तो उसका धन निर्मल होता रहता है,उसके अन्दर खोट नही आ पाती है,और जो भी सम्पत्ति उसके पास होती है,वह हमेशा के लिये होती है,कभी खत्म नही होती है,सदाचार वाले को अगर किसी प्रकार से सामयिक कष्ट मिलते है,तो वे जरा से उपाय के द्वारा ठीक भी हो जाते है,अभी कल ही एक व्यक्ति मेरे पास आया था,उसकी कुन्डली में बारहवां मंगल परेशान कर रहा था,उसे लालकिताब के अनुसार उपाय बताये थे,उपाय भी लगभग एक माह पहले बताये थे,लेकिन उसने कहा कि उसे कोई फ़ायदा नही हो रहा है,शुक्र की गति को जब ध्यान से देखा तो पता लगा कि उसकी संगति किसी प्रकार की गलत महिलाओं से है,उससे पूंछा कि शादी हो गयी है,उसने कहा कि हो गयी है,मैने पूंछा कि किसी प्रकार से कभी किसी गलत महिला से कोई संगति तो नही की है,उसने जो बताया वह सोचने लायक है,उसने शादी के बाद एक अन्य महिला से जाकर मन्दिर में माला पहिनाकर शादी का खेल रच लिया,शादी वाला कोई भी काम संस्कार के रूप में नही हुआ था,अब वह समाज नौकरी परिवार और शरीर सभी बातो से दुखी है,मेरे द्वारा दिया गया उपाय भी काम का नही है,कारण दूध को अगर दूध वाले बर्तन में न डालकर किसी छाछ वाले बर्तन में डाल दिया जायेगा,तो वह दूध भी छाछ बन जायेगा,और छाछ को भी अगर दूध के बर्तन में डाला जायेगा,तो छाछ दूध को भी फ़ाड देगा,उस आदमी का मंगल वाला उपाय तभी कारगर होगा जब वह मंगल के प्रति खरा है,मंगल तभी प्रताडित करता है,जब आदमी का दिमाग खराब आचरणों की तरफ़ चला जाता है,चोरी करने का दंड भुगत कर पाप दूर किया जा सकता है,हत्या करने के बाद उसका प्रायश्चित करने पर पाप से निकला जा सकता है,लेकिन किसी प्रकार से दूसरे पुरुष या दूसरी स्त्री से किया गया संस्कार विरोधी संसर्ग सिवाय बरबादी और कुछ नही दे सकता है,जवानी के नशे में या शराब के नशे में संस्कारों को तिलांजलि दी जा सकती है,लेकिन शरीर की ताकत कम होने पर या नशा उतरने पर जब हकीकत का सामना करना पडता है,तब जाकर समझ में आता है,कि बोये पेड बबूल के,अब आम कहां से होंय.

 

 
 
 
Comments:
 
 
 
 
UPCOMING EVENTS
  Pausha Putrada Ekadashi, 10 January 2025, Friday
  Shakambari Jayanti, 13 January 2025, Monday
  Sakat Chauth Fast, 17 January 2025, Friday
  Vasant Panchami, 2 February 2025, Sunday
  Ratha Saptami, 4 February 2025, Tuesday
  Bhishma Ashtami, 5 February 2025, Wednesday
 
 
Free Numerology
Enter Your Name :
Enter Your Date of Birth :
Copyright © MyGuru.in. All Rights Reserved.
Site By rpgwebsolutions.com