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सुर्य : सूर्य के अशुभ होने पर या कुण्डली में सुर्य के दूषित प्रभाव होने पर पेट, आंख, हृदय का रोग होवे, सरकारी बाधा आवे । ऐसे में तांबा, गेंहू एवं गुड का दान करें, आग को दूध से बुझावें, प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें , हरिवंश पुराण का पाठ करें , ताबें का बराबर दो तुकडा काटकर एक को पानी में बहा दें एक को जीवन भर साथ रखें ।
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बुध : बुध की अशुभता पर दांत टूट जाये, सूंघनें की शक्ति कम हो जावे, गुप्त रोग होवे उपाय में नांक छिदवायें, ताबें के प्लेट में छेद कर बहते पानी में बहायें, दुगा उपासना करें, अपने भोजन में से एक हिस्सा गाय को एक हिस्सा कुत्तों को दें ।
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गुरु : देव गुरु वृहस्पति के अशुभ प्रभाव में आने पर सिर के बाल झड़ने लगे, सोना खो जाये या चोरी हरे जावे, शिक्षा में बाधा आवे, अपयश होवे तब माथे पर केशर का तिलक लगावें, कोइ भी अच्छा काय करने के पूर्व अपना नांक साफ करें । दान में हल्दी, दाल, केसर आदि देवें व ब्रम्हा जी की पूजा करें ।
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चंद्र: चंद्र के कुण्डली में अशुभ होने पर दुधारी पशु की मृत्यु हो जावे, स्मरण शक्ति का ह्रास हो, धर में पानी की कम पड़ जावे । ऐसे में भगवान शिव की आराधना करें , दो मोती या दो चांदीं का तुकड़ा लेकर एक तुकड़ा पानी में बहा दें एक को अपने पास रखें । चंद्र यदि कुण्डली में छठे भाव में हो तो दूध या पानी का दान कदापि नकरें , यदि वारहवां हो तो धमात्मा या साधु को भोजन न करावें न ही दूध पिलावें यदि ऐसा करेंगे तो जीवन भर कष्ट भोगेंगे ।
- मंगल : मंगल के अशुभ होने पर बच्चे जन्म होकर मर जावे, आंख में रोग होवे, बात गठिया रोग दुख देवे, रक्त की कमी या खराबी वाला रोग हो जावे, हर समय क्रैंध आवे, लड़ाइ झगड़ा होवे तब हनुमान जी की आराधना एवं उपवास रखें , तंदूर की मीठी रोटी दान करें , बहते पानी में रेवड़ी व बताशा बहायें, मसूर की दाल दान में देवें ।
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शुक्र : दानवों के गुरु शुक्र के अशुभ प्रभाव में होने पर अंगूठे का रोग हो जावे, चलते समय अगूंठे को चोट पहुंचे, चर्म रोग होवे, स्वप्न दोष होता हो तो अपने खानें में से गाय को प्रतिदिन कुछ हिस्सा अवश्य देवें, गाय, ज्वांर दान करें, नि:सहाय व्यक्ति का पालन पोषण का जिम्मा लेवें, लक्ष्मी उपासना करें ।
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शनि : शनि के अशुभ प्रभाव में होने पर मकान या मकान का हिस्सा गिर जावे या क्षति होवे, अंगों के बाल झड़ जावे, काले संपत्ति का नाश होवे, आग लग जावे व धन संपत्ति का नाश हो तब कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे, तेल में अपना मुख देख वह तेल दान करें, लोहा, काला उडद, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें । भगवान शिव की आराधना करें । यदि कुण्डली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को तांबे का सिक्का या बर्तन कभी न दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा । यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवायें ।
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राहु : राहु के अशुभ होने पर हांथ के नाखून अपने आप टूटने लगे, राजक्ष्यमा रोग के लक्षण प्रगट होवे, दिमागी संतुलन ठीक न रहे, शत्रुओं के चाल पे चाल से मुश्किल बढ़ जावे ऐसी स्थिति में जौं या अनाज को दूध में धो कर बहते पानी में बहायें, कोयला को पानी में बहायें, मूली दान में देवें, भंगी को शराब,मांस दान में दें । सिर में चुटैया रखें, भैरव जी की की उपासना करें ।
- केतु : इसके अशुभ प्रभाव में होने पर मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग होवे, जोड़ों का रोग उभरे, संतान को पीड़ा होवे तब अपने खाने में से कुत्ते को हिस्सा देवें, तिल व कपिला गाय दान में दें, कान छिदवायें व श्री विघ्नविनायक की आराधना करें ।
इन उपायों का प्रयोग कम से कम ४० दिन तक करना चाहिए तब ही फल प्राप्ति संभव होता है