प्रश्न : मुंडन संस्कार का क्या महत्व है? यह बच्चे की किस आयु में और कब-कब किया जा सकता है? इसे करने से क्या लाभ होता है और नहीं करने से क्या दोष लगता है? इसकी शास्त्रसम्मत विधि भी विस्तारपूर्वक बताएं।
हिंदू धर्म के अनुसार 16 मुख्य संस्कारों में से एक संस्कार मुंडन भी है। शिशु जब जन्म लेता है, तब उसके सिर पर गर्भ के समय से ही कुछ केश पाए जाते हैं जो अषुद्ध माने जाते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार, मानव जीवन 84 लाख योनियों के बाद मिलता है। पिछले सभी जन्मों के ऋणों को उतारने तथा पिछले जन्मों के पाप कर्मों से मुक्ति के उद्देश्य से शिशु के जन्मकालीन केश काटे जाते हैं। जिसे मुंडन कहा जाता है।
मुंडन के वक्त कहीं-कहीं शिखा छोड़ने का भी प्रयोजन है, जिसके पीछे मान्यता यह है, कि इससे दिमाग की रक्षा होती है। साथ ही, इससे राहु ग्रह की शांति होती है, जिसके फलस्वरूप सिर ठंडा रहता है।
मुंडन से लाभ :
बाल कटवाने से शरीर की अनावश्यक गर्मी निकल जाती है, दिमाग व सिर ठंडा रहता है व बच्चों में दांत निकलते समय होने वाला सिर दर्द व तालु का कांपना बंद हो जाता है। शरीर पर और विशेषकर सिर पर विटामिन-डी (धूप के रूप में) के पड़ने से कोशिकाएं जाग्रत होकर रक्त का संचार अच्छी तरह कर पाती हैं जिनसे भविष्य में आने वाले केश बेहतर होते हैं।
मुंडन संस्कार कर्म :
सर्व प्रथम शिशु अथवा बालक को गोद में लेकर उसका चेहरा हवन की अग्नि के पश्चिम में किया जाता है। पहले कुछ केश पंडित के हाथ से और फिर नाई द्वारा काटे जाते हैं।
इस अवसर पर गणेश पूजन, हवन, आयुष्य होम आदि पंडित जी से करवाया जाता है। फिर बाल काटने वाले को, पंडित आदि को आरती के पश्चात् भोजन व दान दक्षिणा दी जाती है।
कहाँ करें मुंडन संस्कार?
उत्तर भारत में अधिकतर गंगा तट पर, दुर्गा मंदिरों के प्रांगण में तथा दक्षिण भारत में तिरुपति बालाजी मंदिर व गुरुजन देवता के मंदिरों में मुंडन संस्कार किया जाता है।
संस्कार के बाद केशों को दो पुड़ियों के बीच रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। कहीं-कहीं केश वैसे ही विसर्जित कर दिए जाते हैं।
कब किया जाता है मुंडन संस्कार?
जब सूर्य मकर, कुंभ, मेष, वृष तथा मिथुन राशियों में हो, तब मुंडन शुभ माना जाता है। परंतु बड़े लड़के का मुंडन जब सूर्य वृष राशि पर हो अथवा माँ 5 माह की गर्भवती हो, तब उस वर्ष नहीं करना चाहिए।
मुंडन संस्कार शिशुओं के भावी जीवन का एक प्रमुख और सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है।
संस्कार भास्कर के अनुसार :
गर्भाधान मतश्र्च पुंसवनकं सीमंत जातामिधे नामारण्यं सह निष्क्रमेण च तथा अन्नप्राशनं कर्म च। चूड़ारण्यं व्रतबन्ध कोप्यथ चतुर्वेद व्रतानां पुरः, केशांतः सविसिर्गकः परिणयः स्यात षोडशी कर्मणाम्''॥
जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष के अंत या फिर तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष की समाप्ति से कुछ समय पूर्व शिशु का मुंडन संस्कार करना आमतौर पर प्रचलित है। क्योंकि हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार, एक वर्ष से कम उम्र में मुंडन करने से शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही अमंगल होने का भय बना रहता है।
कुल परंपरा के अनुसार मुंडन संस्कार :
कुल परंपरा के अनुसार प्रथम, तृतीय, पंचम या सप्तम वर्ष में भी मुंडन संस्कार करने का विधान है। शास्त्रीय एवं पौराणिक मान्यता यह हैं, कि शिशु के मस्तिष्क को पुष्ट करने, बुद्धि में वृद्धि करने तथा गर्भावस्था की अशुचियों को दूर कर मानवतावादी आदर्शों को प्रतिस्थापित करने हेतु मुंडन संस्कार किया जाता है। इसका उद्देश्य बालक में बुद्धि, विद्या, बल, आयु और तेज की वृद्धि करना है।
देवस्थान और तीर्थ स्थल पर मुंडन का महत्व :
मुंडन संस्कार किसी देवस्थल या तीर्थ स्थल पर इसलिए कराया जाता है कि उस स्थल के दिव्य वातावरण का लाभ शिशु को मिले तथा उसके मन में सुविचारों की उत्पत्ति हो।
आश्वालायन गृह सूत्र के अनुसार, मुंडन संस्कार से दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। शिशु सुंदर तथा कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रवृत्त होने वाला बनता है।
''तेन ते आयुषे वयामि सुश्लोकाय स्वस्तये'' - आश्वलायन गृह्यसूत्र 1/17/12
जिस शिशु का मुंडन संस्कार सही समय एवं शुभ मुहूर्त में नहीं किया जाता है उसमें बौद्धिक विकास एवं तेज शक्ति का अभाव पाया जाता है। इसलिए शिशु का मुंडन शास्त्रीय विधि से अवश्य किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि मुंडन संस्कार वस्तुतः मस्तिष्क की पूजा अभिवंदना है। मस्तिष्क का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना ही बुद्धिमत्ता है। शुभ विचारों को धारण करने वाला व्यक्ति परोपकार या पुण्य का लाभ पाता है और अशुभ विचारों को मन में भरे रहने वाला व्यक्ति पापी बनकर ईश्वर के दंड और कोप का भागी बनता है। यहां तक कि अपनी जीवन प्रक्रिया को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। इस तरह मस्तिष्क का सदुपयोग ही मुंडन संस्कार का वास्तविक उद्देश्य है।
नारद संहिता के अनुसार -
तृतीये पंचमाव्देवा स्वकुलाचारतोऽपि वा।
बालानां जन्मतः कार्यं चौलमावत्सरत्रयात्॥
बालकों का मुंडन जन्म से तीन वर्ष से पंचम वर्ष अथवा कुलाचार के अनुसार करना चाहिए।
सौम्यायने नास्तगयोर सुरासुर मंत्रिणेः।
अपर्व रिक्ततिथिषु शुक्रेक्षेज्येन्दुवासरे॥
मुंडन संस्कार सूर्य की उत्तरायण अवस्था तथा गुरु और शुक्र की उदितावस्था में, पूर्णिमा, रिक्ता से मुक्त तिथि तथा शुक्रवार, बुधवार, गुरुवार या चंद्रवार को करना चाहिए।
दस्त्रादितीज्य चंद्रेन्द्र भानि शुभान्यतः।
चौल कर्मणि हस्तक्षोत्त्रीणि त्रीणिच विष्णुभात॥
पट् बंधन चौलान्न प्राशने चोपनायने।
शुभदं जन्म नक्षत्रशुभ्र त्वन्य कर्मणि॥
अर्थात चौलकर्म (मुंडन) संस्कार के लिए अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, मृगशिरा, ज्येष्ठ, रेवती, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा तथा शतभिषा नक्षत्र शुभ हैं।
धर्म सिंधु के अनुसार, जन्म मास और अधिक मास (मलमास) तथा ज्येष्ठ पुत्र का ज्येष्ठ महीने में मुंडन करना अशुभ कहा गया है। बालक की माता गर्भवती हो और बालक की उम्र पांच वर्ष से कम हो तो मुंडन नहीं करना चाहिए। यदि माता गर्भवती हो और बालक की उम्र 5 वर्ष से अधिक हो तो ही मुंडन संस्कार कराना चाहिए। यदि माता को 5 महीने से कम का गर्भ हो, तो मुंडन हो सकता है।
यदि माता रजस्वला हो, तो उसकी शांति करवाकर मुंडन संस्कार करना चाहिए। माता-पिता के देहांत के बाद विहित समय (छह महीने बाद) उत्तरायण में मुंडन करना चाहिए। मुंडन से पूर्व नांदी मुख श्राद्ध का भी वर्णन है। किसी प्रकार का सूतक होने पर भी मुंडन वर्जित माना जाता है। मुंडन के बाद तीन महीने तक पिंड दान अथवा तर्पण वर्जित रहता है। परंतु क्षयाह श्राद्ध वर्जित नहीं होता।
मुंडन के समय बालक को वस्त्राभूषणों से विभूषित नहीं करना चाहिए। स्मरणीय है कि, चूड़ाकरण (मुंडन) में तारा का प्रबल होना चंद्रमा से भी अधिक आवश्यक है।
विवाहे सविता शस्तो व्रतबंधे बृहस्पतिः।
क्षौरे तारा विशुद्धिश्र्च शेषे चंद्र बलं बलम्॥ - ज्योतिर्निबंध
निर्णय सिंधु के अनुसार, गर्भाधान के तीसरे, पांचवें तथा दूसरे वर्ष में भी मुंडन किया जाता है। परंतु जन्म से तीसरे वर्ष में श्रेष्ठ और जन्म से पांचवें या सातवें वर्ष में मध्यम माना जाता है।
पारिजात में बृहस्पति का कहना है कि सूर्य उत्तरायण हो, विशेषकर सौम्य गोलक हो तो शुक्ल पक्ष में मुंडन कराना श्रेष्ठ और कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि तक सामान्य माना गया है।
वशिष्ठ के अनुसार, तिथि 2, 3, 5, 7, 10, 11 या 13 को मुंडन कराना चाहिए।
नृसिंह पुराण के अनुसार तिथि 1, 4, 6, 8, 9, 12, 14, 15 या 30 को मुंडन कर्म निंदित है।
वशिष्ठ के अनुसार, रविवार, मंगलवार और शनिवार मुंडन के लिए वर्जित हैं। हालांकि ज्योतिर्बंध में बृहस्पति का वचन है कि पाप ग्रहों के वार में ब्राह्मणों के लिए रविवार, क्षत्रियों के लिए मंगलवार तथा वैश्यों और शूद्रों के लिए शनिवार शुभ है।
जन्म नक्षत्र में मुंडन कर्म हो, मरण और अष्टम चंद्र के समय हो, तो नाक में विकार कहा गया है।
मुंडन संस्कार मुहूर्त :
जन्म या गर्भाधान से 1, 3, 5, 7 इत्यादि विषम वर्षों में कुलाचार के अनुसार, सूर्य की उत्तरायण अवस्था में जातक का मुंडन संस्कार करना चाहिए।
शुभ महीना :
चैत्र (मीन संक्रांति वर्जित), वैशाख, ज्येष्ठ (ज्येष्ठ पुत्र हेतु नहीं), आषाढ़ (शुक्ल 11 से पूर्व), माघ तथा फाल्गुन। जन्म मास त्याज्य।
शुभ तिथि :
शुक्ल पक्ष - 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13
कृष्ण पक्ष - पंचमी तक
शुभ दिन :
सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार
शुभ नक्षत्र :
अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती (जन्मर्क्ष शुभ तथा विद्धर्क्ष वर्ज्य)।
शुभ योग :
सिद्धि योग, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, राज्यप्रद योग।
शुभ राशि एवं लग्न अथवा नवांश लग्न :
वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु, मीन शुभ हैं। इस लग्न के गोचर में भाव 1, 4, 7, 10 एवं 5, 9 में शुभ ग्रह तथा भाव 3, 6, 11 में पाप ग्रह के रहने से मुंडन का मुहूर्त शुभ माना जाता है। परंतु मुंडन का लग्न जन्म राशि जन्म लग्न को छोड़कर होना चाहिए। ध्यान रहे, चंद्र भाव 4, 6, 8, 12 में नहीं हो।
ऋषि पराशर के अनुसार, मुंडन जन्म मास और जन्म नक्षत्र को छोड़ कर करना चाहिए।
समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य :
- जन्म नक्षत्र, जन्म तिथि, जन्म मास, श्राद्ध दिवस (माता-पिता का मृत्यु दिन) चित्त भंग, रोग।
- क्षय तिथि, वृद्धि तिथि, क्षय मास, अधिक मास, क्षय वर्ष, दग्धा तिथि, अमावस्या तिथि।
- विष्कुंभ योग की प्रथम 5 घटिकाएं, परिघ योग का पूर्वार्द्ध, शूल योग की प्रथम 7 घटिकाएं, गंड और अति गंड की 6 घटिकाएं एवं व्याघात योग की प्रथम 8 घटिकाएं, हर्षण और व्रज योग की 9 घटिकाएं तथा व्यतिपात और वैधृति योग समस्त शुभकार्यों के लिए त्याज्य हैं।
- मतांतर से विष्कुंभ की 3, शूल की 5, गंड और अति गंड की 7, तथा व्याघात और वज्र की 9 घटिकाएं शुभ कार्यों में त्याज्य हैं।
- महापात के समय में भी कार्य न करें।
तिथि, नक्षत्र और लग्न इन तीनों प्रकार का गंडांत का समय, भद्रा (विष्टीकरण), तिथि, नक्षत्र तथा दिन के परस्पर बने कई दुष्ट योगों की तालिका :
- उपर्युक्त योगों का भी शुभ कार्य में त्याग करना चाहिए।
- पाप ग्रह युक्त, पाप भुक्त और पाप ग्रह विद्ध नक्षत्र एवं नक्षत्रों की विष संज्ञक घटिकाएं।
- पाप ग्रह युक्त चंद्र, पाप युक्त लग्न का नवांश।
- जन्म राशि, जन्म लगन से अष्टम लग्न, दुष्ट स्थान 4, 8, 12 का चंद्र और क्षीण चंद्र वर्जित है।
- लग्नेश 6, 8, 12 न हो, जन्मेश और लग्नेश अस्त नहीं हों, पाप ग्रहों का कर्तरी योग भी वर्जित है।
- मासांत दिन, सभी नक्षत्रों के आदि की 2 घटिकाएं, तिथि के अंत की एक घटी और लग्न के अंत की आधी घड़ी शुभ कार्यों में वर्जित है।
- जिस नक्षत्र में ग्रह या पापी ग्रहों का युद्ध हुआ हो वह शुभ कार्यों में छह महीने तक नहीं लेना चाहिए। ग्रहों की एक राशि तथा अंश, कलादि सम होने पर ग्रह युद्ध कहा जाता है।
- ग्रहण के पहले 3 दिन और बाद के 6 दिन वर्जित हैं। ग्रहण नक्षत्र वर्जित, ग्रहण खग्रास हो तो उस नक्षत्र में छह मास, अर्द्धग्रास हो तो 3 मास, चौथाई ग्रहण हो, तो 1 मास तथा उदयोदय और अस्तास्त हो, तो 3 दिन पहले और 3 दिन बाद तक कोई शुभ कार्य न करें।
- गुरु शुक्र का अस्त, बाल्य, वृद्धत्व, गुर्वादित्य समय भी शुभ कार्यों में त्याज्य हैं। बाल्य और वृद्धत्व के 3 दिन वर्जनीय हैं।
- कृष्ण पक्ष 14 के चंद्र वार्द्धिक्य, अमावस के अस्त और शुक्ल एकम् के बाल्य चंद्र के समय भी शुभ कार्य न करें।
- रिक्ता तिथियां (4, 9, 14), दग्धा तिथियां, भद्रा युक्त तिथियां, व्यतिपात और वैधृति एवं अर्द्धप्रहरा युक्त समय शुभ कार्यों एवं खासकर मुंडन के लिए वर्जित हैं।
अतः जीवन के आरंभ काल में जो बाल जन्म के साथ उत्पन्न होते हैं, वे पशुता के सूचक माने जाते हैं। इन्हें शुभ मुहूर्त में बाल कटाने से जहां वह पशुता समाप्त होती है वहीं मानवोचित गुणों की प्रखरता के साथ बुद्धि और ज्ञान की भी वृद्धि होती है।
मुंडन संस्कार कराने से लाभ, न कराने से दोष :
मुंडन संस्कार का धार्मिक महत्व तो है ही, विज्ञान की दृष्टि से भी यह संस्कार अति आवश्यक है, क्योंकि शरीर विज्ञान के अनुसार, यह समय बालक के दांतादि निकलने का समय होता है। इस कारण बालक को कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है।
अक्सर इस समय बालक में निर्बलता, चिड़चिड़ापन आदि उत्पन्न और उसे दस्तों तथा बाल झड़ने की शिकायत लगती है। मुंडन कराने से बालक के शरीर का तापमान सामान्य हो जाने से अनेक शारीरिक तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे फोड़े, फुंसी, दस्तों आदि से बालक की रक्षा होती है।
यजुर्वेद के अनुसार, यह संस्कार बल, आयु, आरोग्य तथा तेज की वृद्धि के लिए किए जाने वाला अति महत्वपूर्ण संस्कार है।
महर्षि चरक ने लिखा है-
पौष्टिकं वृष्यमायुष्यं शुचि रूपविराजनम्।
केशश्यक्तुवखदीनां कल्पनं संप्रसाधनम्॥
मुंडन संस्कार, नाखून काटने और बाल संवारने तथा बालों को साफ रखने से पुष्टि, वृष्यता, आयु, पवित्रता और सुंदरता की वृद्धि होती है।
मुंडन संस्कार को दोष परिमार्जन के लिए भी परम आवश्यक माना गया है। गर्भावस्था में जो बाल उत्पन्न होते हैं उन सबको दूर करके मुंडन संस्कार के द्वारा बालक को संस्कारित शिक्षा के योग्य बनाया जाता है। इसीलिए कहा गया है, कि मुंडन संस्कार के द्वारा अपात्रीकरण के दोष का निवारण होता है।
मुंडन संस्कार की शास्त्रोक्त विधि :
मुंडन संस्कार के देवता प्रजापति हैं तथा अग्नि का नाम शुचि है। सामग्री के रूप में गाय का दूध, दही, घी, कलावा, गुंथा आटा, एक साथ तीन-तीन बांधे हुए २४ कुश, ठंडा-गर्म पानी, सेही का कांटा, कांसे की थाली, रक्त वृषभ का गोबर, लौह और ताम्र मिश्रित छुरा तथा अन्य सर्वदेव पूजा की प्रचलित सामग्री का उपयोग किया जाए।
शुभ दिन तथा शुभ मुहूर्त में माता-पिता स्वयं स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध और स्वच्छ वस्त्रादि धारण करें। बालक को भी दो शुद्ध उत्तम वस्त्र पहनाएं तथा बालक को मुंडन के पश्चात पहनाने हेतु नए वस्त्र भी रखें।
मुंडन संस्कार में प्रयोग आने वाली सामग्री - शीतल एवं गुनगुना गरम पानी, मक्खन, शुद्ध घी, दूध, दही, कंघी, कुश, उस्तरा, गोचर, कांसे का पात्र, शैली, मौली, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, दीपक, नैवेद्य, ऋतुफल, चंदन, शुद्ध केशर, रुई, फूलमाला, चार प्रकार के रंग, हवन सामग्री, समिधा, उड़द दाल, पूजा की साबुत सुपारी, श्रीफल, देशी पान के पत्ते, लौंग, इलायची, देशी कपूर, मेवा, पंचामृत, मधु, चीनी, गंगाजल, कलश, चौकी, तेल, प्रणीता पात्र, प्रोक्षणी पात्र, पूर्णपात्र, लाल या पीला कपड़ा, सुगंधित द्रव्य, पंच पल्लव, पंचरत्न, सप्तमृत्तिका, सर्वौषधि, वरण द्रव्य, धोती, कुर्ता, माला, पंचपात्र, गोमुखी, खड़ाऊं आदि कपड़ा वेदी चंदोया का, रेत या मिट्टी, सरसों, आसन, थाली, कटोरी तथा नारियल।
चूड़ाकर्म से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में मंडप में कांस्य पात्र में रक्त बैल का गोबर तथा दूध अथवा दही डाला जाता है। इसके पश्चात् उसे स्वच्छ वस्त्र से ढका जाता है। फिर उसी स्थान पर क्षुर, 27 कुश और तीन शल्लकी कंट रखना चाहिए। फिर पीले वस्त्र से बालक के सिर में बांधने के लिए दूर्वा, सरसों, अक्षतयुक्त पांच पोटलिकाएं आदि लाल मौली से बांधकर रखे जाते हैं। फिर बालक को स्नान करवाकर माता की गोद में बैठाया जाता है व पिता से आचार्य के द्वारा पूजन प्रारंभ कराया जाता है।
संकल्प करवाकर देवताओं का पूजन कर बालक के दक्षिण दिशा के बालों को शल्लकी कंट से तीन भागकर पुनः एक बनाकर पांच विनियोग किया जाता है। इस प्रकार प्रतिष्ठित कर दक्षिण के क्रम से सिर में पोटलिका को आचार्य द्वारा बांधा जाता है।
यह संस्कार आयु तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए किया जाता है। चूड़ाकर्म में बालक के कुल धर्मानुसार शिखा रखने का विधान है। यह संस्कार बालक के तीसरे या पांचवें विषम वर्ष में शुभ दिन में जब चंद्र तारा अनुकूल हों तब यजमान को आचार्य के द्वारा कराना चाहिए। यजमान द्वारा पुनः संकल्प कर देवताओं का पूजन करना चाहिए, ततपश्चात् ब्राह्मण को 'वृतोऽस्मि' कहें।
चूड़ाकरण संस्कार में कुश कंडिका होम पूर्ववत् कर सभ्य नाम से अग्नि का पूजन करें। आज्याहुति, व्याहृति होम, प्रायश्चित होम पूर्ववत् करें। होम के पश्चात् पूर्ण पात्र संकल्प करें। तत्पश्चात् यजमान द्वारा ब्राह्मण को सामग्री दान देकर पिता गर्म जल से शिशु या बालक के केश को धोएं।
पुनः दही और मक्खन से बाल धोकर दक्षिण क्रम से ठंडे व गरम जल से धोना चाहिए। इस प्रकार मिश्रोदक से धोकर दक्षिण भाग को जूटिका को शल्ल की कंट से तीन भाग कर प्रत्येक में एक-एक कुश लगाना चाहिए।
कुशयुक्त बालों को बाएं हाथ में रखकर दाहिने हाथ में क्षुर ग्रहण कर विनियोग करना चाहिए। पश्चात् क्षुर को ग्रहण करना चाहिए। फिर जूटिका को एकत्र कर दक्षिण में केश छेदन के लिए विनियोग कर छोड़ना चाहिए। तीन कुश सहित बाल काटकर कांसे की थाली में रक्त वृषभ के गोबर के ऊपर रखना चाहिए।
पुनः पश्चिमादि जूटिकाओं को भी पूर्वोक्त मंत्रों द्वारा धोकर एकत्र करना चाहिए। फिर पश्चिम के बाल काटने का विनयोग करते हुए बाल काटकर गोबर के ऊपर रखना चाहिए। पुनः पूर्व के बालों को विनियोग कर पूर्व गोबर के ऊपर रखना चाहिए। पुनः पूर्व के बालों को विनियोग कर पूर्व के बाल काटकर उत्तर के बालों को काटने का विनियोग कर मध्य में गोपद तुल्य गोलाकर बाल शिखा के लिए छोड़कर अन्य बालों को काटकर सब बालों को गोबर में रखकर जल स्थान, गौशाला या तालाब में रखना चाहिए।
पुनः स्नान कर पूर्णाहुति करना चाहिए। ततपश्चात् क्षुर से त्र्यायुष निकालकर धारण हेतु विनियोग कर दाहिने हाथ की अनामिका और अंगुष्ठ से आचार्य द्वारा यजमान को सपरिवार त्र्यायुष लगाया जाना चाहिए। फिर आचार्य द्वारा भोजनोपरांत यजमान को आशीर्वाद दिया जाना चाहिए।
संस्कार चाहे किसी भी ऋषि, विद्वान, चिंतक द्वारा बनाए गए हों, सदैव ग्रहण करने योग्य होते है। आज धर्म के नाम पर बहुत सी कुरीतियां व्यवहार में आ गई हैं। हमें उन कुरीतियों को त्यागना चाहिए धर्म को नहीं, सुसंस्कारों को नहीं।
धर्म हमें सहिष्णुता, त्याग, बलिदान, सयंम, व्रत और उपवास की शिक्षा देता है। वह हमें कुप्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की समझ देता है, संस्कारित करता है और यह सिखाता है कि अगर हम अपने भीतर पनपते अवगुणों को बलपूर्वक नहीं दबाएंगे तो हमारी शारीरिक ऊर्जा का एक बड़ा भाग यों ही व्यर्थ चला जाएगा। ये कुप्रवृत्तियां केवल शरीर को ही नहीं बल्कि मन को भी दूषित करती हैं। इससे आत्मिक विकास एवं सामाजिक उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
यदि हम संस्कारों की स्पष्ट अवहेलना करते हैं, उनके विपरीत कार्य करने का प्रयास करते हैं, तो हम हृदय की सुचिता को नहीं समझ सकते हैं। इसलिए संस्कार ही वह माध्यम है जो हमारे अंदर मानवोचित गुणों और पवित्रता का का संचार करते हैं। संस्कार जन्म जन्मांतर तक अस्तित्व में बना रहता है।
अंत में कहा जा सकता है कि मुंडन संस्कार करने व करवाने से लाभ ही मिलते हैं अतः विधि विधान से बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए।
Posted Comments |
"बहुत बढीया। ऐसी पोस्टे समय समय पर करके सभी का उचित मार्गदर्शन करते रहे।" |
Posted By: राजेन्द्रसिंह चौहान |
"अति विद्वतापूर्ण एवम् सारगर्भित आलेख।" |
Posted By: Vijay Vatsal |
"Sadhu! Sadhu!" |
Posted By: Nagendradutt |
"Namaskar, nice to get this knowledgeable things to our Sanskar. How can we took mundane date for child. Can we findout date for our child on this June month. " |
Posted By: Sunita parajuli |
Vegetarian Recipes | |
» | SHAHI PANEER RECIPE |
» | Ghee Rice |
» | Cuban Black Bean and Potato Soup |
» | LAUKI KE KOFTE RECIPE |
» | Turkish Zucchini Fritters |
» | Machcher Jhol |
» | Caribbean Coconut Rice |
» | SARSON KA SAAG |
More |
Upcoming Events | |
» | Chotha Shravan Somvar Vrat, 8 August 2022, Monday |
» | Hariyali Teej 2022, 11 August 2022, Thursday |
» | Raksha Bandhan, 11 August 2022, Thursday |
» | Narali Purnima 2022, 12 August 2022, Friday |
» | Kajali Teej 2022, 14 August 2022, Sunday |
» | Krishna Janmashtami, 18 August 2022, Thursday |
More |
![]() |
Feng Shui Tips For Your Home |
![]() |
Feng Shui tips for health |
![]() |
Feng Shui items for health |
View all |
![]() Ganesha Prashnawali |
![]() Ma Durga Prashnawali |
![]() Ram Prashnawali |
![]() Bhairav Prashnawali |
![]() Hanuman Prashnawali |
![]() SaiBaba Prashnawali |
|
|
Dream Analysis | |