दो0- आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान ।
परूष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ।। 9 ।।
सीता तैं मम कृत अपमाना । कटिहउँ तव सिर क िन कृपाना ।।
नाहिं त सपदि मानु मम बानी । सुमुखि होति न त जीवन हानी ।।
स्याम सरोज दाम सम सुंदर । प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर ।।
सो भुज कं कि तव असि घोरा । सुनु स अस प्रवान पन मोरा ।।
चंद्रहास हरू मम परितापं । रघुपति बिरह अनल संजातं ।।
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरू मम दुख भारा ।।
सुनत बचन पुनि मारन धारा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा ।।
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई । सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई
मास दिवस महुँ कहा न माना । तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना ।।