दो0- सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह ।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ।। 51 ।।
प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ । अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ ।।
रिपु के दुत कपिन्ह तब जाने । सकल बाँधि कपीस पहिं आने ।।
कह सुग्रीव सुनहु सब बानर । अंग भंग करि प वहु निसिचर ।।
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए । बाँधि कटक चहु पास फ़िराए ।।
बहु प्रकार मारन कपि लागे । दीन पुकारत तदपि न त्यागे ।।
जो हमार हर नासा काना । तेहि कोसलाधीस कै आना ।।
सुनि लछिमन सब निकट बोलाए । दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए ।।
रावन कर दीजहु यसह पाती । लछिमन बचन बाचु कुलघाती ।।