दो0- काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ।। 38 ।।
तात राम नहिं नर भूपाला । भुवनेस्वर कालहु कर काला ।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता । ब्यापक अजित अनादि अनंता ।।
गो द्विज धेनु देव हितकारी । कृपासिंधु मानुष तनुधारी ।।
जन रंजन भंजन खल ब्राता । बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ।।
ताहि बयरू तजि नाइअ माथा । प्रनतारति भंजन रघुनाथा ।।
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही । भजहु राम बिनु हेतु सनेही ।।
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा । बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ।।
जासु नाम त्राय ताप नसावन । सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ।।