दो0- द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि ।
दधिमुख केहरि निस स जामवंत बलरासि ।। 54 ।।
ए कपि सब सुग्रीव समाना । इन सम कोटिन्ह गनइ को नाना ।।
राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं । तृन समान त्रौलोकहि गनहीं ।।
अस मैं सुना श्रवन दसकंधर । पदुम अ ारह जूथप बंदर ।।
नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं । जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं ।।
परम क्रोध मीजहिं सब हाथा । आयसु पै न देहिं रघुनाथा ।।
सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला । पुरहिं न त भरि कुधर बिसाला ।।
मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा । ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा ।।
गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका । मानहुँ ग्रसन चहत हहिं लंका ।।