दो0- कछु मारेसिय कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि ।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि ।। 18 ।।
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना । प एसि मेधनाद बलवाना ।।
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही । देखिअ कपिहि कहाँ कर आही ।।
चला इंद्रजित अतुलित जोध । बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा ।।
कपि देखा दारून भट आवा । कटकटाइ गर्जा अरू धावा ।।
अति बिसाल तरू एक उपारा । बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा ।।
रहे महाभट ताके संगा । गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा ।
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा । भिरे जुगल मानहुँ गजराजा ।।
मु िका मारि चढ़ा तरू जाई । ताहि एक छन मुरूछा आई ।।
उ ि बहोरि कीन्हिसि बहु माया । जीति न जाइ प्रभंजन जाया ।।