दो0- सहज सूर कपि भालु पुनि सिर पर प्रभु राम ।
रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम ।। 55 ।।
राम तेज बल बुधि बिपुलाई । सेष सहस सत सकहिं न गाई ।।
सक सर एक सोषि सत सागर । तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर ।।
तासु बचन सुनि सागर पाहीं । मागत पंथ कृपा मन माहीं ।।
सुनत बचन बिहसा दससीसा । जौं असि मति सहाय कृत कीसा ।।
सहज भीरू कर बचन दृढ़ाई । सागर सन ानी मचलाई ।।
मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई । रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई ।।
सचिव सभीत बिभीषन जाकें । बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें ।।
सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी । समय बिचारि पत्रिका काढ़ी ।।
रामानुज दीन्ही यह पाती । नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती ।।
बिहसि बाम कर लीन्ही रावन । सचिव बोलि स लाग बचावन ।।