दो0- सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज ध्र्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।। 37 ।।
सोइ रावन कहुँ बनी सहाई । अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई ।।
अवसर जानि बिभीषनु आवा । भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा ।।
पुनि सिरू नाइ बै निज आसन । बोला बचन पाइ अनुसासन ।।
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता ।।
जो आपन चाहै कल्याना । सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ।।
सो परनारि लिलार गोसाईं । तजउ चउथि के चंद कि नाईं ।।
चैदह भुवन एक पति होई । भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई ।।
गुन सागर नागर नर जोऊ । अलप लोभ भल कइह न कोऊ ।।