दो0- निमिष निमिष करूनानिधि जाहिं कलप सम बीति ।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ।। 31 ।।
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना । भरि आए जल राजिव नयना ।।
बचन कायँ मन मम गति जाही । सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताहि ।।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तव सुमिरन भजन न होई ।।
केतिक बात प्रभु जातुधान की । रिपुहि जीति आनिबी जानकी ।।
सुनु कपि तोहि समान उपकारी । नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी ।।
प्रति उपकार करौं का तोरा । सनमुख होइ न सकत मन मोरा ।।
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि बिचार मन माहीं ।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता । लोचन नीर पुलक अति गाता ।।