सुन्दरकाण्ड - सुन्दरकाण्ड
भाग - 54

दो0- की भइ भेंट कि फ़िरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर ।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ।। 53 ।।

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें । मानहु कहा क्रोध तजि तैसें ।।
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा । जातहिं राम तिलक तेहि सारा ।।
रावन दूत हमहि सुनि काना । कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना ।।
श्रवन नासिका काटैं लागे । राम सपथ दीन्हें हम त्यागे ।।
पूँछिहु नाथ राम कटकाई । बदन कोटि सत बरनि न जाई ।।
नाना बरन भालु कपि धारी । बिकटानन बिसाल भयकारी  ।।
जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा । सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा ।
अमित नाम भट क िन कराला । अमित नाग बल बिपुल बिसाला ।।

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