दो0- रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि ।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ।। 41 ।।
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं । आयूहीन भए सब तबहीं ।।
साधु अवग्या तुरत भवानी । कर कल्यान अखिल कै हानी ।।
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा । भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा ।।
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं । करत मनोरथ बहु मन माहीं ।।
देखिहउँ जाइ चरन जलजाता । अरून मृदुल सेवक सुखदाता ।।
जे पद परसि तरी रिषिनारी । दंडक कानन पावनकारी ।।
जे पद जनकसुताँ उर लाए । कपट कुरंग संग धर धाए ।।
हर उर सर सरोज पद जेई । अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई ।।