दो0 - हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। 1 ।।
जात पवनसुत देवन्ह देखा । जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता । प इन्हि आइ कही तेहिं बाता ।।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा । सुनत बचन कह पवनकुमारा ।।
राम काजु करि फ़िरि मैं आवौं । सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं ।।
तब तव बदन पै िहउँ आई । सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ।।
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना । ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना ।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा । कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ।।
सोरह जोजन मुख तेहिं यऊ । तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ ।।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ।।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ।।
बदन पइ ि पुनि बाहेर आवा । मागा बिदा ताहि सिरू नावा ।।
मोहि सुरन्ह जेहि लागि प ावा । बुधि बल मरमु तोर मैं पावा ।।